नीले समुद्र के बीच, हरे-भरे पेड़-पौधों से सजा ख़ूबसूरत द्वीप श्रीलंका क्यों बर्बाद हुआ? कोरोना महामारी की वजह से पर्यटन उद्योग का बर्बाद होना या चीन से बहुत ज्यादा कर्ज लेना या सरकार की नीतियां... श्रीलंका की बर्बादी के लिए असल जिम्मेदार कौन है? इसे समझेंगे... लेकिन शुरुआत मौजूदा हालात से होगी... श्रीलंका में सरकार से नाराज लोग हिंसक प्रदर्शन पर उतर आए हैं. लोगों में आपातकाल और कर्फ्यू का कोई डर नहीं है. जबकि राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे, विपक्ष से देश को संकट से उबारने के लिए गुहार लगा रहे हैं.
श्रीलंका में बीते दो सालों में विदेशी मुद्रा भंडार में 70% से ज्यादा की गिरावट आई है. महंगाई दर 17 फीसदी पार कर चुकी है. यह आंकड़ा दक्षिण एशिया के किसी भी देश में महंगाई का सबसे भयानक स्तर है. श्रीलंका में 1 कप चाय की कीमत 100 रुपये है. वहीं चीनी 290 रुपये किलो तो चावल 500 रुपये किलो है. खबरों के अनुसार, अभी श्रीलंका में एक पैकेट ब्रेड की कीमत 150 रुपये हो चुकी है. दूध का पाउडर 1,975 रुपये किलो हो चुका है, तो एलपीजी सिलेंडर का दाम 4,119 रुपये है. इसी तरह पेट्रोल 254 रुपये लीटर और डीजल 176 रुपये लीटर बिक रहा है.
सवाल उठता है कि इस बदहाली के लिए जिम्मेदार कौन है? कोरोना, चीन का कर्ज या राजपक्षे परिवार?
श्रीलंका में पर्यटन का कारोबार अप्रैल 2019 में हुए सिलसिलेवार बम धमाके के बाद से ही कमजोर पड़ने लगा था. रही सही कसर कोरोना महामारी ने पूरी कर दी. यहां सबसे ज्यादा पर्यटक यूरोप, रूस और भारत से आते हैं. सरकारी आंकड़ों के हिसाब से श्रीलंका की जीडीपी में इस सेक्टर का योगदान 10% से ज्यादा है.
हालांकि सेशल्स और मॉरिशस जैसे कई अन्य देश भी हैं जिनकी अर्थव्यवस्था कोरोना के दौर में भी बर्बाद नहीं हुई. जानकार मानते हैं कि बुनियादी ढांचे के विकास के लिए चीन जैसे देशों से कर्ज़ लेना और उनकी भारी किस्तें चुकाना भी श्रीलंका की बर्बादी की बड़ी वजह है. श्रीलंका ने हम्बनटोटा पोर्ट प्रोजेक्ट चलाने के लिए चीन से कर्ज लिया और अपनी औकात से ज्यादा खर्च करना शुरू कर दिया.
आर्थिक बदहाली के कारण श्रीलंकाई रुपये की वैल्यू पिछले कुछ दिनों में डॉलर के मुकाबले 46 फीसदी से ज्यादा कम हो चुकी है. श्रीलंकाई रुपये की वैल्यू 1 डॉलर के मुकाबले 201 से टूटकर 318 पर पहुंच चुकी है. इसकी तुलना अन्य देशों से करें तो 1 डॉलर की वैल्यू भारत में करीब 76 रुपये, पाकिस्तान में 182 रुपये, नेपाल में 121 रुपये, मॉरीशस में 45 रुपये और 14,340 इंडोनेशियाई रुपये के बराबर है.
भारी-भरकम कर्ज की वजह से श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार (Forex Reserve) समाप्त होने की कगार पर है. तीन साल पहले तक श्रीलंका के पास 7.5 बिलियन डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार था. जो जुलाई 2021 में महज 2.8 बिलियन डॉलर पर पहुंच गया. नवंबर 2021 में यह गिरकर 1.58 बिलियन डॉलर के स्तर पर आ गया. श्रीलंका के पास विदेशी कर्ज की किस्तें चुकाने लायक भी फॉरेक्स रिजर्व नहीं बचा है.
जिसके बाद श्रीलंकाई सरकार सोना बेचकर काम चलाने लगी. एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2021 में श्रीलंका के केन्द्रीय बैंक के पास 6.69 टन सोने का भंडार था, जिसमें से करीब 3.6 टन सोना अभी तक बेचा जा चुका है और अब अनुमान के मुताबिक, श्रीलंका के पास करीब 3.0 से 3.1 टन ही सोना बचा है. यानी मौजूदा दौर में श्रीलंका के पास विदेशी मुद्रा जमा करने के लिए सिर्फ 3 टन सोना बचा है.
इसके अलावा श्रीलंका सरकार द्वारा केमिकल फर्टिलाइजर्स को एक झटके में पूरी तरह से बैन करने और 100 फीसदी ऑर्गेनिक खेती के निर्णय ने किसानी को चौपट कर दिया और कृषि उत्पादन आधा रह गया.
इसके अलावा श्रीलंका का आयात पर बहुत ज्यादा निर्भर होना भी अहम फैक्टर है. आवश्यक वस्तुओं के अलावा श्रीलंका पेट्रोलियम, भोजन, कागज, चीनी, दाल, दवाएं और परिवहन उपकरण भी आयात करता है.
अब बात करते हैं सरकार की नीतियों की.... श्रीलंका की राजनीति में राजपक्षे परिवार पूरी तरह से निरंकुश माना जाता है. सत्ता को अपने पास रखने के लिए इस परिवार ने संविधान में कई संशोधन किए हैं. वर्तमान में राजपक्षे परिवार के आधा दर्जन से ज्यादा सदस्य श्रीलंका की केन्द्रीय सरकार में शामिल हैं.
श्रीलंका के राष्ट्रपति- गोटबया राजपक्षे...
प्रधानमंत्री- महिंदा राजपक्षे...
शहरी विकास मंत्रालय- महिंदा राजपक्षे
श्रीलंका के गृहमंत्री- चमल राजपक्षे
श्रीलंका के वित्तमंत्री- बासिल राजपक्षे
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राजपक्षे परिवार की अगली पीढ़ी भी सत्ता में विराजमान है. प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के बेटे नमल राजपक्षे श्रीलंका के खेल मंत्री हैं, इसके साथ ही टेक्नोलॉजी मंत्रालय भी नमल राजपक्षे के पास है. वहीं, चमल राजपक्षे के बेटे शाशेंन्द्र राजपक्षे श्रीलंका के कृषि मंत्री हैं. यानि, श्रीलंका में करीब 70 प्रतिशत प्रमुख मंत्रालय राजपक्षे परिवार के पास है.
ये आंकड़े बताते हैं कि श्रीलंका के आर्थिक हालात बिगड़ते रहे लेकिन सरकार की खराब नीतियां, इसे संभालने में पूरी तरह विफल रही. हालांकि वेनेजुएला से तुलना करें तो श्रीलंकाई सरकार ने कम से कम महंगाई से निपटने के लिए देश के अंदर करेंसी नोट जारी नहीं किया है. अन्यथा हालात और भी बदतर हो सकते थे....