Somnath Temple Reconstruction: नेहरू क्यों नहीं चाहते थे सोमनाथ का पुनर्निर्माण? अड़ गए थे पटेल| Jharokha

Updated : Dec 23, 2022 19:25
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Mukesh Kumar Tiwari

Somnath Temple Reconstruction - गुजरात राज्य के काठियावाड़ में (Kathiawar in Gujarat) समंदर किनारे स्थित है 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक सोमनाथ ज्योतिर्लिंग (Somnath Jyotirlinga). सोमनाथ ज्योतिर्लिंग का महत्व महाभारत, श्रीमद्भागवत और स्कंद पुराणा में भी वर्णित है. पहली बार इस मंदिर को 725 ईस्वी में सिन्ध के मुस्लिम सूबेदार अल जुनैद ने तुड़वाया. महमूद गजनवी ने 1024 में इसपर हमला किया, इसकी संपदा को लूटा और इसे नष्ट किया. बाद में मुगल शासक औरंगजेब (Mughal Ruler Aurangzeb) के काल में भी सोमनाथ मंदिर को दो बार तोड़ा गया. पहली बार 1665 ईस्वी में और दूसरी बार 1706 ईस्वी में.

इस एपिसोड में हम जानेंगे सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण के इतिहास (Somnath Temple Reconstruction History) को. भारत की आजादी के बाद सरदार वल्लभ भाई पटेल (Sardar Vallabhbhai Patel) के अथक प्रयासों की वजह से मंदिर को फिर से भव्य स्वरूप प्रदान किया जा सका. 15 दिसंबर 1950 को सरदार पटेल का निधन हुआ था...

सरदार पटेल ने सिर्फ भारत की रियासतों को मिलवाकर एक राष्ट्र का निर्माण ही नहीं किया था बल्कि सोमनाथ मंदिर को वैभवशाली बनाने का स्वप्न भी देखा था... हालांकि पटेल के जीते जी ये स्वप्न पूरा न हो सका. पटेल के निधन के बाद गुजरात से ही आने वाले के एम मुंशी (Kanaiyalal Maneklal Munshi) ने इस कार्य को पूरा किया था. हालांकि तब प्रधानमंत्री नेहरू (Jawaharlal Nehru) नहीं चाहते थे कि सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कराया जाए...

सरदार पटेल ने किया था सोमनाथ मंदिर के पुनर्निमाण का आह्वान

भारत की आजादी और जूनागढ़ के भारतीय संघ में शामिल होने के बाद तब के केंद्रीय मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का आह्वान किया था. पटेल ने महात्मा गांधी के साथ इसकी चर्चा भी की. गांधी ने योजना का समर्थन किया लेकिन कहा कि मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए योगदान जनता से होना चाहिए. पटेल ने भी यह सलाह मान ली.

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पटेल और महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के बीच सोमनाथ से जुड़ी चर्चा का सार ये निकला था कि बापू के कहने पर मंदिर निर्माण के लिए फंड जनता से जुटाया जाना था, जिसके लिए बाद में एक न्यास बनाया गया था. इसमें के एम मुंशी प्रमुख भूमिका में रहे. 

नेहरू के खिलाफ जाकर पटेल ने दिया था मंदिर निर्माण का आदेश

तब सरदार पटेल ने नेहरू की बात को नहीं मानते हुए मंदिर निर्माण का आदेश दे दिया था. नेहरू जानते थे कि सरदार पटेल का राजनीतिक कद उनसे कहीं ज्यादा है और यदि उन्होंने ज्यादा विरोध किया तब कांग्रेस पार्टी में विद्रोह हो जाएगा. साल 1950 के अक्टूबर में सोमनाथ मंदिर के खस्ताहाल हिस्सों को ढहाया गया और वहां मौजूद मस्जि जैसे ढांचे को कुछ किलोमीटर दूर स्थापित किया गया.

लेकिन इसके कुछ वक्त बाद ही महात्मा गांधी की हत्या हो गई और सरदार पटेल का भी निधन हो गया. मंदिर को नए रूप में लाने की जिम्मेदारी केएम मुंशी के कंधों पर आ गई. मुंशी तब नेहरू सरकार में खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री थे.

सोमनाथ मंदिर के लिए मुंशी की सक्रियता नेहरू को नापसंद थी

मुंशी ने लिखा है, “मैं स्पष्ट था कि सोमनाथ मंदिर सिर्फ एक प्राचीन स्मारक ही नहीं था; बल्कि यह पूरे देश की भावनाओं से जुड़ा भी था और इसका पुनर्निर्माण एक राष्ट्रीय प्रतिज्ञा थी."

हालांकि नेहरू को इस प्राचीन स्मारक के जीर्णोद्धार का विचार कभी पसंद नहीं आया और इसके पुनर्निर्माण का काम करने के लिए उन्होंने मुंशी की "एक से ज्यादा बार आलोचना" की थी. मुंशी को मंत्रिमंडल में "सोमनाथ से जुड़े" के रूप में रेफर किया गया था.

1951 के शुरुआती महीनों में मंदिर के उद्घाटन के कुछ ही हफ्ते पहले मामले ने तूल पकड़ लिया. मंत्रिमंडल की बैठक के अंत में नेहरू ने मुंशी को बुलाया और कहा:

सोमनाथ को रीस्टोर करने की आपकी कोशिश मुझे पसंद नहीं है.

जवाहर लाल नेहरू ने अपने पत्ते खोल दिए थे. उन्हें 'हिंदू पुनर्जागरण' का डर सताने लगा था. एक प्राचीन स्मारक जिसे बार-बार ध्वस्त किया गया, उसका जीर्णोद्धार नेहरू के मुताबिक हिंदू पुनरुत्थान का काम था.

बहरहाल, इस घटनाक्रम के बाद मुंशी ने नेहरू के सवालों और बयानों का जवाब दिया था...

मुंशी भड़क गए थे. नेहरू की टिप्पणी का जवाब दिए बिना, वह बैठक से चले गए और अगले ही दिन उन्हें एक लंबा पत्र लिखा. उन्होंने पत्र में लिखा- "कल आपने 'हिंदू पुनरुत्थानवाद' का उल्लेख किया था. मैं इस विषय पर आपके विचार जानता हूं; मैंने उनके साथ न्याय किया है; मुझे आशा है कि आप मेरे साथ भी उतना ही न्याय करेंगे अतीत में मेरा विश्वास ही है जिसने मुझे वर्तमान में काम करने और अपने भविष्य की ओर देखने की शक्ति दी है. मैं उस आजादी को महत्व नहीं दे सकता अगर वह हमें भगवद् गीता से वंचित करती है या हमारे लाखों लोगों को उस विश्वास से उखाड़ फेंकती है जिसके साथ वे हमारे मंदिरों को देखते हैं."

नेहरू ने राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को सोमनाथ जाने से रोका था

नेहरू साफतौर पर मंदिर को लेकर बहुत उत्साहित नहीं थे. जब भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को मंदिर का उद्घाटन करने के लिए आमंत्रित किया गया, तो नेहरू ने उन्हें एक पत्र भेजा, जिसमें कहा गया था, "मैं मानता हूं कि मुझे सोमनाथ मंदिर के शानदार उद्घाटन के साथ खुद को जोड़ने का विचार पसंद नहीं है. यह सिर्फ एक मंदिर का दौरा नहीं है, जो निश्चित रूप से आपके या किसी और के द्वारा किया जा सकता है, बल्कि एक ऐसे समारोह में हिस्सा लेना है, दुर्भाग्यवश जिसके कई दुष्परिणाम हैं.

नेहरू ने राजेंद्र प्रसाद को ऐसा करने से रोका था, लेकिन राजेंद्र प्रसाद ने नेहरू की सलाह को अनसुना कर दिया और मंदिर के उद्घाटन कार्यक्रम में शामिल हुए. नेहरू का तर्क था कि जनसेवक खुद को पूजा स्थलों से न जोड़ें. वहीं, राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद मानते थे कि सभी धर्मों को बराबरी का आदर मिले.

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2 मई 1951 को नेहरू ने मुख्यमंत्रियों को चिट्ठी लिखी और कहा कि भारत सरकार का इस कार्यक्रम से कोई लेना-देना नहीं है. हालांकि, राजेंद्र प्रसाद ने नेहरू को भेजी चिट्ठी में कहा, "मुझे अपने धर्म पर पूरा भरोसा है और मैं खुद को इससे अलग नहीं कर सकता. अगर मुझे आमंत्रित किया गया तो मैं मस्जिद या चर्च के साथ भी ऐसा ही करूंगा." आखिरकार 11 मई 1951 को राष्ट्रपति ने पुनर्निर्मित सोमनाथ मंदिर का उद्घाटन किया.

11 मई 1951 को राजेन्द्र प्रसाद ने मंदिर के उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता करते हुए एक अद्भुत भाषण दिया. उन्होंने कहा कि हमारी सभ्यता के भौतिक प्रतीक नष्ट हो सकते हैं, लेकिन कोई भी शस्त्र, सेना या राजा उस जुड़ाव को खत्म नहीं कर सकता जो लोगों का अपनी संस्कृति और आस्था के साथ है. जब तक वह जुड़ाव रहेगा, तब तक सभ्यता जिंदा रहेगी. उन्होंने कहा कि यह एक सभ्यता का नया रूप था जिसे रचनात्मक तरीके से गढ़ा गया था.

ये सदियों से लोगों के दिलों में पला-बढ़ा था और इसने एक बार फिर सोमनाथ देवता की प्राण-प्रतिष्ठा की अगुवाई की है. उन्होंने कहा कि सोमनाथ प्राचीन भारत की आर्थिक और आध्यात्मिक समृद्धि का प्रतीक था. सोमनाथ का पुनर्निर्माण तब तक पूरा नहीं होगा, जब तक कि भारत अतीत की समृद्धि को पा नहीं लेता है.

यह भाषण प्रेस में व्यापक रूप से कवर किया गया था लेकिन "आधिकारिक प्लेटफॉर्म्स में इसे शामिल नहीं दी गई".

पटेल, मुंशी के अथक प्रयास से हुआ सोमनाथ की जीर्णोद्धार

इस तरह लाखों लोगों की भक्ति, पटेल की प्रतिज्ञा, गांधी के आशीर्वाद और मुंशी के अथक प्रयास के साथ, भव्य सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया और राष्ट्र के गहरे जख्मों पर एक मरहम लगाया गया. इस बीच, नेहरू ने प्राचीन मंदिरों के बारे में अपना विचार बदल दिया. उन्होंने बौद्ध यात्रियों के लिए सांची में तीर्थस्थल के निर्माण के लिए भूमि दान की और सारनाथ (एक अन्य बौद्ध स्थल) के जीर्णोद्धार के लिए अनुदान दिया.

“कई साल बाद, सोमनाथ की घटना पर विचार करते हुए, मुंशी ने नेहरूवादी धर्मनिरपेक्षता की सबसे तीखी आलोचना की. उन्होंने कहा: "धर्मनिरपेक्षता के नाम पर, धर्म-विरोधी ताकतें बहुसंख्यक समुदाय की धार्मिक पवित्रता की निंदा करती हैं."

अल्पसंख्यक इस तरह की टिप्पणी नहीं झेलते हैं और अपनी मांगों को मनवाने में सफल रहते हैं जो अनुचित होती है लेकिन मंजूर कर ली जाती हैं.

कौन थे कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी? || Who was Kanaiyalal Maneklal Munshi?

यहां एक बात और जान लें कि आज भी लोग के एम मुंशी के बारे में कम ही जाने हैं. बता दें कि महात्मा गांधी के सहयोग से मुंशी ने 1938 में भारतीय विद्या भवन नाम से एक शैक्षणिक ट्रस्ट की स्थापना की थी. यह अब एक अंतर्राष्ट्रीय शैक्षणिक संस्था बन चुकी है. मुंबई में जहां भारतीय विद्या भवन स्थित है, उस मार्ग का नाम भी केएम मुंशी मार्ग है. दिल्ली में भी भारतीय विद्या भवन है.

मुंशी गुजराती साहित्य के मशहूर लेखक रहे. उन्होंने हिंदी और अंग्रेजी में भी रचनाएं कीं.

मुंशी के उपन्यास पृथ्वी वल्लभ पर 1924 में मणिलाल जोशी ने पहली बार फिल्म बनाई थी. इस कथानक में हिंसा और सेक्स की भरमार के लिए बापू ने इसकी आलोचना की थी.

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चित्रकार लीलावती मुंशी, मुंशी की दूसरी पत्नी थीं. वह कांग्रेस की सदस्य और राज्यसभा सदस्य भी रही.

आजाद भारत में कांग्रेस के सदस्य रहे मुंशी बाद में स्वतंत्र पार्टी और जनसंघ से जुड़ गए थे. कम ही लोग जानते हैं कि विश्व हिंदू परिषद (VHP) के संस्थापकों में भी मुंशी का नाम शुमार है.

चलते चलते 15 दिसंबर (15 December) को हुई दूसरी घटनाओं के बारे में जान लेते हैं

1988 - भारतीय महिला पहलवान गीता फोगाट का जन्‍म हुआ

1749 - छत्रपति शिवाजी महाराज के पोते शाहू महाराज का निधन हुआ

1966 - दुनिया की सबसे बड़ी एनीमेशन कंपनी के संस्थापक वॉल्ट डिज़्नी का निधन हुआ

1985 - मॉरिशस के गवर्नर शिवसागर रामगुलाम का निधन हुआ
 
1976 - भारतीय फुटबॉलर बाईचुंग भूटिया का जन्म हुआ

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