जिनकी उंगली पकड़कर चले Mulayam कैसे थे वो Lohia? स्टालिन की बेटी ने क्यों की थी मिन्नतें! Jharokha 12 Oct

Updated : Oct 21, 2022 14:25
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Mukesh Kumar Tiwari

Ram Manohar Lohia Death Anniversary 2022 : प्रख्यात राजनेता डॉ. राममनोहर लोहिया का जन्म 23 मार्च 1910 को उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले के अकबरपुर में हुआ था. बचपन में मां का देहांत हो गया था. पिता श्री हीरालाल पेशे से अध्यापक व देशभक्त थे. पिता ने ही बेटे की परवरिश की. पिताजी महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के अनुयायी थे. जब वे गांधीजी से मिलने जाते तो राम मनोहर को भी अपने साथ ले जाया करते थे. लोहिया पर इसी वजह से गांधी के विचारों का असर हुआ. आइए आज जानते हैं लोहिया की जिंदगी से जुड़े एक अनसुने किस्से को.

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20 मई 1944 को एक शख्स को बंबई से गिरफ्तार किया जाता था. कुछ रोज आर्थर रोड जेल (Arthur Road Jail) में रखने के बाद 22 जून को उन्हें लाहौर भेज दिया जाता है... 

कहने को तो ये नजरबंदी थी लेकिन आगे जिसे आप सुनेंगे वह आपको परेशान कर देगा. लाहौर किले (Lahore Fort) में उनसे उनकी किताबें, कलम और कागज व दाढ़ी बनाने की किट ले ली गई. कपड़े उतारकर तलाशी ली गई. यहां उन्हें एक कोठरी में बंद कर दिया गया जिसके अंदर ही उन्हें नहाना धोना पड़ता था.

कोठरी के दरवाजे और फर्श के बीच जो जगह थी वहां से गंदा पानी भी बहता और वहीं से खाना भी दिया जाता... रात भर सिर के ऊपर एक हाई वोल्टेज बल्ब जलता रहता. 

कोठरी की दीवार से कुछ कदम पर एक और दीवार थी जो सारी हवा को रोक लेती थी... कोठरी में मच्छर भरे पड़े थे और पक्के फर्श की वजह से लाहौर की गर्मी कुछ ज्यादा ही सताती थी. आगे इन्हें 20-20 घंटे घड़ा रखा गया...  सितंबर में तो एक हफ्ते तक सोने ही नहीं दिया गया... अंग्रेजी हुकूमत ने ये सितम जिस शख्स पर किया वह थे राम मनोहर लोहिया...लोहिया जीवनकाल में 20 बार सलाखों के पीछे गए और बड़ी बात ये कि 12 बार वे आजाद भारत में जेल गए...

आज राममनोहर लोहिया का जिक्र इसलिए क्योंकि आज से 55 साल पहले 12 अक्टूबर 1967 के दिन राम मनोहर लोहिया ने सिर्फ 57 वर्ष की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया था... मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) भी जिनकी उंगली पकड़कर राजनीति में आए, वह राममनोहर लोहिया ही थे...

10 साल की उम्र में सत्याग्रह में कूदे थे लोहिया

एक बेहतरीन छात्र रहे लोहिया 10 साल की उम्र में सत्याग्रह आंदोलन में कूद पड़े थे. आजादी के बाद 1967 के लोकसभा चुनाव के दौरान राम मनोहर लोहिया फूलपुर के चुनाव प्रचार (Phulpur Election Campaign) में व्यस्त थे.. वह जवाहरलाल नेहरू (Jawahar Lal Nehru) की बहन विजय लक्ष्मी पंडित (Vijay Laxmi Pandit) के खिलाफ मैदान में उतर आए थे... वहां उनसे मिलने एक विदेशी महिला आई... उसने अपना नाम स्वेतलाना (Svetlana Alliluyeva) बताया और खुद को जोसेफ स्टालिन (Joseph Stalin) की बेटी कहा... स्टालिन सोवियत संघ के पूर्व तानाशाह थे. 1941 से 1953 तक वह शासक रहे थे.

यह महिला लोहिया से अपील कर रही थी कि वह राजनीतिक संपर्कों का इस्तेमाल करके स्वेतलाना की वीजा अवधि बढ़वा दें. स्वेतलाना अपने दिवंगत पति ब्रजेश सिंह का स्मारक बनाने के लिए कुछ समय और भारत में रहना चाहती थीं. लोहिया से मिलने से पहले वह कई और भी राजनेताओं से मिल चुकी थीं... 

लोहिया ने मदद का वादा किया और स्वेतलाना को लड़ाई जारी रखने की सलाह दी. लोहिया नेहरू और कांग्रेस के धुर विरोधी थे... तब के लोग याद करते हैं कि स्वेतलाना के जाने के बाद, लोहिया ने अपनी पार्टी के नेताओं से कहा: "देखो ... स्टालिन की बेटी मदद के लिए इधर-उधर भाग रही है, जबकि नेहरू की बेटी इंदिरा (Indira Gandhi) भारत की प्रधानमंत्री हैं."

स्वेतलाना की कहानी को करीब से जानने के लिए हमें गुजरे दौर के पन्ने पलटने होंगे. और ये पन्ने हमें एक ऐसी प्रेम कहानी की ओर ले जाते हैं, जो शायद आपको भावुक कर दे

कालाकांकर के कुंवर बृजेश सिंह और स्वेतलाना की प्रेम कहानी

इलाहाबाद जो अब प्रयागराज है, उसके पास एक जगह है कालाकांकर... यहां के शाही परिवार से एक शख्स हुए कुंवर बृजेश सिंह (Kunwar Brijesh Singh)... भारत में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (Communist Party of India) यानी सीपीआई के मेंबर थे. उनके भतीजे दिनेश सिंह भारत में इंदिरा सरकार में मंत्री भी रहे...

सिंह का जन्म कलाकांकर (Kalakankar) के तालुकदार शाही राजा रमेश सिंह के घर हुआ था. उनके पिता राजा रामपाल सिंह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) के फाउंडर में से एक थे... दादा लाल प्रताप सिंह 1857 के भारतीय विद्रोही नेताओं में शामिल थे.

बृजेश सिंह की गिनती भारत के बड़े कम्युनिस्ट नेताओं में की जाती है. उन्होंने आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों के खिलाफ विरोध का बिगुल फूंक दिया था और इसकी कीमत भी चुकाई... अंग्रेजी सरकार ने बृजेश सिंह को काले पानी की सजा दे दी थी, लेकिन जिस पानी के जहाज से उन्हें ले जाया जा रहा था, उससे भाग निकलने में वह कामयाब रहे थे... इस दौरान वह बीमार हुए और इलाज के लिए उन्हें रूस गए... यहीं पर मिली स्वेतलाना... अक्टूबर 1963 में, कुन्तसेवो अस्पताल में ब्रोंकाइटिस से उबरने के दौरान बृजेश सिंह स्वेतलाना अल्लिलुयेवा से मिले थे. तब स्वेतलाना टॉन्सिल के इलाज के लिए वहां थीं. गलियारे में एक दूसरे से मिले और बात करते करते वहीं सोफे पर बैठ गए... घंटों वे वहीं बैठे रहे..

एक रोमांटिक रिश्ता परवान चढ़ता गया... वीजा नियमों के मुताबिक, कुन्त्सेवो अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद बृजेश सिंह को भारत वापस लौटना था... हालांकि, वह और स्वेतलाना एक नया प्लान बना बैठे... प्लान ऐसा था कि बृजेश सिंह भारत से रूस जाएंगे और रूसी ग्रंथों के हिंदी ट्रांसलेटर के रूप में काम करेंगे. वह दिसंबर 1963 में भारत के लिए रवाना हुए और मार्च 1965 में रूस गए. वह 7 अप्रैल को शेरेमेतियोवो हवाई अड्डे पर उतरे, जहां स्वेतलाना और उनके बेटे जोसेफ से भी मिले. बृजेश सिंह से मुलाकात के बाद जोसेफ ने उनके सलीके, ऐटिट्यूड की तारीफ भी की.

एलेक्सी कोश्यिन ने नहीं होने दी दोनों की शादी

खराब हेल्थ की वजह से स्वेतलाना को बृजेश से शादी का फैसला जल्द करना था... वह पहले 3 शादियां कर चुकी थीं... बृजेश ने भी उनके बिना भारत लौटने से इनकार कर दिया था... लेकिन साथ यात्रा करने के लिए दोनों का पति पत्नी होना जरूरी थी. विदेशी होने के कारण शादी के लिए रजिस्ट्रेशन कराने के लिए वह और स्वेतलाना 3 मई को मॉस्को ऑफिस पहुंचे. काम तो हुआ नहीं, और अगले दिन स्वेतलाना को क्रेमलिन में एलेक्सी कोश्यिन के दफ्तर में बुलाया गया...  कोश्यिन कोल्ड वॉर के दौरान सोवियत संघ के प्रमुख थे. ये दफ्तर कभी स्वेतलाना के पिता का था. यहां पहुंचने के बाद उनसे तमाम तरह के उल जुलूल सवाल पूछे गए.

मसलन उन्होंने पार्टी की बैठकों में शामिल होना क्यों बंद कर दिया गया है. स्वेतलाना ने जवाब दिया कि "उन्हें अपने परिवार की देखभाल करनी थी और अब उसका एक बीमार पति भी है.": पति शब्द सुनते ही कोश्यिन की त्योरियां चढ़ गईं... उन्होंने कहा कि तुम ये क्या कर रही हो? तुम जवान हो, हेल्दी हो, स्पोर्ट्सवुमन हो... तुम्हें यहां कोई दूसरा नहीं मिला. मेरा मतलब किसी जवां मर्द से है... तुम इस बूढ़े बीमार हिंदू के साथ शादी करके क्या करोगी? हम इसके खिलाफ हैं, दोनों ने गहराई से प्रेम किया लेकिन सोवियत सरकार ने उन्हें शादी करने की इजाजत नहीं दी.

स्वेतलाना से आधिकारिक तौर पर शादी को रजिस्टर कराने का अधिकार छीन लिया गया. 

बृजेश सिंह पूरी तरह हाशिए पर आ गए

सरकार की सख्ती का असर ये था कि बृजेश पूरी तरह से अलग थलग पड़ गए... उनके भारतीय दोस्त उनसे मिलना बंद कर चुके थे... मॉस्को में भारत के राजदूत त्रिलोकी नाथ कौल और United Arab Republic  के राजदूत मुराद गालिब ही उनके ऐसे दोस्तों में थे जो उनसे मिलने आ रहे थे... उनके भतीजे दिनेश सिंह इंदिरा गांधी की सरकार में मंत्री थे,वह भी उन्हें जवाब नहीं दे रहे थे... अब बस भाई सुरेश सिंह ही थे जो कालाकांकर से उन्हें लगातार लिखते रहते थे.

पब्लिशिंग हाउस प्रोग्रेस के लिए सिंह द्वारा किया गया ट्रांसलेशन काम भी रूसी सरकार के निशाने पर आ गया..

बृजेश फिर बीमार हो गए...  उन्हें उसी अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां वह और स्वेतलाना मिले थे. रविवार 30 अक्टूबर को, पब्लिशिंग हाउस से अपने दोस्तों और सहयोगियों से मिलने के बाद, सिंह ने एक सफेद बैल को एक गाड़ी खींचने का सपना देखा. बाद में उन्होंने स्वेतलाना से कहा कि भारत में ऐसे सपने को मौत के नजदीक आने का अपशगुन माना जाता था. 

उन्होंने कहा- मुझे पता है कि मैं आज मर जाऊंगा. सोमवार, 31 अक्टूबर 1966 को सुबह 7 बजे, सिंह ने अपने दिल और फिर सिर की ओर इशारा करते हुए कहा कि उन्हें कुछ धड़क रहा था और फिर उनका निधन हो गया. स्वेतलाना, बृजेश की मृत्यु पर रोई नहीं... भारतीय दोस्तों के साथ मिलकर बृजेश के शव का भगवद् गीता के पाठ के बाद अंतिम संस्कार किया...

बृजेश की अस्थियां विसर्जित करने भारत आईं स्वेतलाना

स्वेतलाना ने संकल्प ले लिया था कि बृजेश से शादी तो नहीं हो सकी लेकिन उनकी अस्थियों को वह खुद गंगा में बहाएंगी. कोश्यिन ने उन्हें इस शर्त पर भारत जाने की परमिशन दी कि वह वहां की मीडिया के सामने मुंह नहीं खोलेंगी.

लखनऊ हवाई अड्डे पर उतरने के बाद, वे कालाकांकर के शाही परिवार के महल राजभवन गईं. उनके आने के बाद बृजेश सिंह के अस्थि कलश सुरेश सिंह को सौंप दिया गया.. वहां से नावें गंगा के बीच गईं, जहाँ हिंदू रीति-रिवाजों से अस्थि को विसर्जित किया गया, स्वेतलाना दूसरी महिलाओं के साथ छत से देखी गई क्योंकि केवल पुरुषों को ही राख ले जाने की इजाजत थी.

कलाकांकर में स्वेतलाना ने ब्रजेश सिंह के नाम पर एक अस्पताल बनाने के बारे में सोचा. अस्पताल के निर्माण में मदद करने के लिए Alliluyeva Charitable Trust और Alliluyeva Trust की स्थापना की, जिसमें 35 बिस्तर थे. इसकी नींव मई 1969 में सुमित्रा नंदन पंत ने रखी. 20 वर्षों तक ये अस्पताल चलता रहा

स्वेतलाना को आगे वित्तीय संकट हुआ और वह इस अस्पताल के लिए धन उपलब्ध नहीं करा पा रही थी. इसका नतीजे ये है कि आज यह अस्पताल एक निजी स्कूल बन चुका है..

26 अप्रैल 1967 को एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि वह बृजेश को अपना पति मानती है लेकिन अलेक्सी कोश्यिन ने उन्हें कभी भी कानूनी रूप से शादी करने की इजाजत नहीं दी.

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स्वेतलाना को भारत बहुत पसंद आया और वह बृजेश की यादों के सहारे यहीं रुकना भी चाहती थीं, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. क्योंकि सोवियत संघ में तब स्टालिन की विरोधी सरकार थी इसलिए भारत सरकार भी उन्हें शरण देकर सोवियत से दुश्मनी मोल नहीं लेना चाहती थी.

ऐसे में स्वेतलाना ने सोशलिस्ट नेता राम मनोहर लोहिया से मुलाकात की. लोहिया ने स्वेतलाना की मांग के पक्ष में संसद में जोरदार भाषण दिया था.

तमाम कोशिशों के बावजूद स्वेतलाना को भारत में रहने की अनुमति नहीं मिली और वह अमेरिका चली गईं. अमेरिका जाने के बाद भी उनके दिल से भारत और बृजेश नहीं निकले. आखिरकार साल 2011 में स्वेतलाना ने दुनिया को अलविदा कह दिया.

चलते चलते 12 अक्टूबर की दूसरी घटनाओं पर एक नजर डाल लेते हैं

1919 : विजियाराज सिंधिया जी का जन्म हुआ

1860 : ब्रिटेन और फ्रांस की सेना ने चीन की राजधानी बीजिंग पर क़ब्ज़ा किया

1992 : मिस्त्र की राजधानी काहिरा में भूकंप से करीब 510 लोगों की मौत

Ram Manohar LohiaKunwar Brijesh Singh

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