Pandit Shriram sharma Biography: पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य गायत्री परिवार के संस्थापक (Founder of Gayatri Pariwar) हैं. हरिद्वार में शांतिकुंज आश्रम आज भी इतिहास का अद्भुत नमूना है. आज हम श्रीराम शर्मा के जीवन को करीब से जानेंगे और साथ ही समझेंगे कि किस तरह उन्होंने आजादी के संग्राम से लेकर गायत्री परिवार की स्थापना तक के सफर को पूरा किया.
मार्च 1930 के बाद का दौर... नमक आंदोलन की लपटें अंग्रेजी हुकूमत को झुलसाने लगी थीं... इसी आंदोलन के दौरान सत्याग्रह करने एक 20 साल का लड़का आगरा पहुंचा... हाथ में भारत का ध्वज लिए लड़के से अंग्रेजों ने तिरंगा छीनने की कोशिश की. पुलिस ने कई बार कोशिश की लेकिन उसने तिरंगा नहीं छोड़ा, लड़के को पीटा गया, उसने झंडा अपने मुंह में दबा लिया. इस झंडे के टुकड़े उसके मुंह से तभी निकाले जा सके जब वो बेहोश हो गया... ऐसा पुलिस ने नहीं बल्कि डॉक्टरों ने किया था... इस लड़के का नाम था श्रीराम शर्मा और आगे चलकर इसी ने समाज सुधार के लिए गायत्री परिवार की स्थापना की.
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20 सितंबर 1911 को आगरा के आंवल खेड़ा में जन्म हुआ था श्रीराम शर्मा का... आज हम उनकी जिंदगी को करीब से जानेंगे और साथ ही समझेंगे कि गायत्री परिवार क्या है और यह कैसे काम करता है?
श्रीराम शर्मा का जन्म एक जमींदार घराने में हुआ था... पिता पंडित रूपकिशोर शर्मा राजपुरोहित होने के साथ साथ विद्वान भगवत कथाकार भी थे. वह दूर-दराज के राजघरानों के राजपुरोहित, विद्वान, भगवत् कथाकार थे. हालांकि श्रीराम एक जमींदार घराने से थे लेकिन उनका मन शुरुआत से ही अध्यात्म साधना और गरीबों-मजबूरों की तकलीफ को लेकर संवेदनशील थे. एक बार गांव की एक महिला को कुष्ठ हो गया, तो बालक श्रीराम ने परिवार का विरोध सहकर भी उसी की टोली में जाकर उसकी पूरी सेवा की.
श्रीराम शर्मा ने मात्र 12 साल की उम्र में अध्यात्म की राह पकड़ ली थी. श्रीराम शर्मा 1927-1933 तक स्वतंत्रता सेनानी रहे. बड़े हुए तो आर्य समाज मथुरा के प्रमुख बन गए. उन्होंने 3500 से ज्यादा किताबें लिखीं. जब श्रीराम 15 साल के थे तब मदन मोहन मालवीय ने कान में फूककर उन्हें गायत्री मंत्र की दीक्षा दी थी.
श्रीराम शर्मा ने 15 साल की उम्र से 24 साल की उम्र तक हर साल 24 लाख बार गायत्री मंत्र का जप किया. आजादी के आंदोलन में हिस्सा लिया. 3 बार जेल गए. वे घरवालों के विरोध क्वे बावजूद कई समय तक भूमिगत कार्य करते रहे और जेल भी गए. जेल में भी श्रीराम अपने साथियों को शिक्षण दिया करते और वे वहां से अंग्रेजी भाषा सीखकर लौटे. जेल में उन्हें देवदास गांधी, मदन मोहन मालवीय और अहमद किदवई जैसी हस्तियों का मार्गदर्शन मिला.
श्रीराम पर गणेशशंकर विद्यार्थी का बहुत प्रभाव पड़ा. इन्हीं की वजह से पंडित जी राजनीति में आये थे. राजनीति में एंट्री हुई तो महात्मा गांधी के भी करीब आए. 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के वक्त श्रीराम को मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश का प्रभारी नेता नियुक्त किया गया था.
मैनपुरी षड़यंत्र में भी वह शामिल रहे. श्रीराम शर्मा 1942 में आगरा षड़यंत्र केस में भी शामिल रहे थे. इस केस का नाम king emperor v/s shree ram sharma था.। इस मुक़दमे में पंडितजी के बेटे रमेश कुमार, बेटी कमला व बड़े भाई बालाप्रसाद शर्मा भी गिरफ्तार हुए थे. साल 1945 के अंत में सभी लोग रिहा हुए.
जेल में बंद रहने के दौरान पंडितजी को यातनाएं भी दी गईं. उनके कान का पर्दा फट गया था. आजादी के बाद वे लेखन का कार्य करते रहे. ग्लूकोमा की वजह से पंडित जी की दोनों आंखों की ज्योति चली गई. इसके बाद नेत्रहीन अवस्था में उन्होंने 5 पुस्तकें बोलकर लिखीं.
1971 में हरिद्वार में शांतिकुंज की स्थापना की. इस आश्रम में रहना और दो वक्त का भोजन निशुल्क है. पर्यटक यहां 2-3 दिन रह सकते हैं. यहीं से गायत्री परिवार की शुरुआत हुई. जीवनकाल में उन्होंने 3500 से ज्यादा किताबें लिखीं.
पंडित जी ने बेरोजगार युवाओ और नारियों को अपने पैरो पर खड़ा करने के लिए अपने गांव में एक बुनताघर स्थापित किया.
अखिल विश्व गायत्री परिवार की स्थापना साल 1926 में हुई थी. गायत्री परिवार जीवन और संस्कृति के आदर्श सिद्धांतों का निर्माण करने वाला संघ है. गायत्री परिवार वसुधैवकुटुम्बकम् की मान्यता के आदर्श का अनुकरण करते हुये हमारी प्राचीन ऋषि परम्परा का विस्तार करने वाला समूह है. इसकी स्थापना श्रीराम शर्मा ने की थी. लगभग तीन किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला शांतिकुंज आश्रम भारत का सबसे बड़ा और अद्भुत आश्रम है.
1971 में आगरा-मथुरा की जगह उन्होंने हरिद्वार को अपनी कर्मभूमि के रूप में चुना. शांतिकुंज के रूप में आज यह संस्था वटवृक्ष की तरह खड़ी है. भारतीय संस्कृति में आई कुरीतियों के खिलाफ शांतिकुंज ने पूरे देश में अभियान छेड़ा. जाति-प्रथा को तोड़ने और नारी जागरण के क्षेत्र में क्रांतिकारी काम किए. नारी जागरण की शुरुआत श्रीराम शर्मा ने अपने घर से की. उन्होंने अपनी पत्नी और बेटी को गायत्री मंत्र से दीक्षित किया और उनका यज्ञोपवित संस्कार करवाया. उस वक्त महिलाओं के लिए गायत्री मंत्र का जाप करना और यज्ञोपवित धारण करना सनातन धर्म में वर्जित था.
आचार्य ने सनातन धर्म में कर्मकांड कराने वाले पुरोहितों की परिभाषा बदल डाली. हिंदू धर्म में धार्मिक कर्मकांड कराने का अधिकार केवल ब्राह्मणों को ही है लेकिन आचार्य ने इस प्रथा को जाति-उन्मूलन अभियान चलाकर तोड़ा. आदिवासियों, पिछड़ों, दलितों और समाज के दूसरे उपेक्षित वर्गों को वैदिक कर्मकांड की शिक्षा-दीक्षा देकर उन्हें पुरोहित के रूप में स्थापित किया. आज शांतिकुंज में अलग अलग जातियों से जुड़े लोग वैदिक कर्मकांड कराने वाले पुरोहित के रूप में देखे जा सकते हैं.
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युवकों में छात्र जीवन से ही भारतीय वैदिक संस्कृति का बीजारोपण करने के लिए शांतिकुंज भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा का आयोजन हर वर्ष देश के सभी स्कूल-कॉलेजों में करवाता है. इसके अलावा शांतिकुंज में अध्यापक शिक्षण सत्र, परिवार निर्माण सत्र, संगीत साधना शिविर, तीर्थ सेवन सत्र, योग और साधना सत्र निरंतर चलते रहते हैं. सामूहिक विवाह, सामूहिक यज्ञोपवित और सामूहिक मुंडन समारोह शांतिकुंज में कराए जाते हैं.
1994 में श्रीराम शर्मा के उत्तराधिकारी के रूप में उनके दामाद डाक्टर प्रणव पंड्या ने संस्था की कमान संभाली और 2002 में डॉक्टर पंड्या ने शांतिकुंज को नई दिशा देने के लिए देव संस्कृति विश्वविद्यालय की स्थापना की. 2 जून 1990 को गंगा दशहरे के दिन पंडित जी ब्रम्हलीन हो गए. सन 1991 में भारत सरकार ने उनकी स्मृति में एक डाक टिकट जारी किया.
चलते चलते 20 सितंबर को हुई दूसरी घटनाओं पर एक नजर डाल लेते हैं
1388: दिल्ली के सुल्तान फिरोज तुगलक (Firoz Shah Tughlaq) शाह तृतीय का निधन
1933 - भारत में होमरूल लीग की संस्थापिका एनी बेसेंट (Annie Besant) का निधन हुआ
1948 - फिल्म निर्माता-निर्देशक महेश भट्ट (Mahesh Bhatt) का जन्म हुआ
2007 - फ्रांस की सबसे वृद्ध महिला सिमोन कैपोन की 113 वर्ष की आयु में मृत्यु हो गई