Lost Tribes of Israel : क्या कश्मीर में आकर बसा था इजरायल का लापता कबीला? | Jharokha 26 October

Updated : Nov 04, 2022 18:52
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Mukesh Kumar Tiwari

Kashmir and Israelites Connection : इज़रायल की खोई हुई जनजातियों और कश्मीरियों से जुड़ा एक सिद्धांत खासी चर्चा में है. सवाल ये है कि क्या कश्मीरियों का इजरायलियों से कोई रिश्ता है? इस रिश्ते के ऐतिहासिक प्रमाण क्या क्या हैं? आइए पड़ताल करते हैं कश्मीरियों और इजरायलियों के बीच के इसी रिश्ते को और समझने की कोशिश करते हैं कि क्या सचमुच इस दावे में कोई दम है?

1947 में 26 अक्टूबर को कश्मीर का भारत में विलय हुआ था

1947 में 26 अक्टूबर के ही दिन कश्मीर का भारत में विलय हुआ था. कश्मीर के इतिहास से जुड़ी, संस्कृति से जुड़ी कई बातें हम पढ़ते रहते हैं... लेकिन आज हम जानेंगे इस धरती के ऐसे बीते हुए कल के बारे में जो इसका रिश्ता हजारों मील दूर इजरायल से जोड़ता है.

हिटलर के नरसंहार से बड़ा था Siege of Jerusalem

यहूदियों के नरसंहार का जब भी जिक्र होता है, सबसे पहले दिमाग में हिटलर का होलोकास्ट नजर आता है. कई फिल्में आई, डॉक्युमेंट्री इसपर बनी है लेकिन 587 ईसा पूर्व में भी एक होलोकास्ट हुआ था...  Siege of Jerusalem की इस घटना का जिक्र इतिहास में मिलता है. इसे बेबीलोन की कैद भी कहते हैं.

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यह यहूदी इतिहास की वह घटना है जब यहूदी-बेबीलोनियन के बीच युद्ध में यहूदियों की हार हुई थी... इसके बाद यरुशलेम में सोलोमन मंदिर को नष्ट कर दिया गया था. घटना का वर्णन हिब्रू बाइबिल में भी किया गया है, कई हजार यहूदियों को इस दौरान बन्दी बना लिया और यरूशलेम को खंडहर के रूप में छोड़ दिया.

इजरायल में इजरायलिट्स के 12 में से 2 कबीले ही मौजूद हैं

तब इजरायलिट्स यानी जैकब के वंश के लोगों के 12 कबीले थे जिसमें से आज इजरायल या फलस्तीन में 2 ही मौजूद हैं. सवाल ये है कि बाकी के 10 कहां गए? ऐसा कहा जाता है कि ये कबीले भारत और पर्शिया में चले गए थे. कश्मीरियों को लेकर एक दावा ऐसा है जो कहता है कि कश्मीरी दरअसल बानी इजरायली हैं. कश्मीर नाम कशर शब्द से निकला है जिसका हिब्रू में अर्थ सही से होता है.

कश्मीरियों की वंशावली पर क्या कहते हैं इतिहासकार?

कश्मीर के पहले इतिहासकार मुल्लानादिरी मालूम होते हैं जिन्होंने सुलतान सिकंदर के शासन (1378-1426) में तारीख-ए-कश्मीर लिखना शुरू किया था. उन्होंने इसे सुलतान जैन उल अबिदीन के शासन में पूरा किया था. दूसरे इतिहासकार मुल्ला अहमद थे जिन्होंने अपनी किताब वाकया ए कश्मीर सुलतान जैन उल अबीदिन के शासन में लिखी.

इन दोनों इतिहासकारों ने स्पष्ट रूप से लिखा है कि कश्मीर के निवासी इजरायल के वंशज हैं. अब्दुल कादिर बिन क़ाज़ी-उल क़ुज़त वसील अली खान की किताब हशमत ए कश्मीर 1820 में लिखी गई थी और ये किताब भी कहती है कि कश्मीर के निवासी इज़राइल के वंशज हैं. इजरायल, जैकब का ही एक दूसरा नाम है.

Jesus in Heaven on Earth के लेखक नजीर अहमद लिखते हैं कि कश्मीर के वर्तमान निवासियों के पूर्वज यहाँ शायद तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में राजा वसुकुल के शासनकाल में बसे थे. उनका विचार मुर्जुनपुर के मुल्ला मुहम्मद खलील द्वारा इतिहास की पुस्तक और एच.एच.विल्सन की हिस्ट्री ऑफ कश्मीर पर आधारित है.

1884 में पंडित नारायण कौल की किताब भी अहम

पंडित नारायण कौल, एक कश्मीरी पंडित, ने 1884 में अपना गुलदस्ता-ए-कश्मीर लिखा. इसमें उन्होंने कश्मीरी मुसलमानों और पंडितों का वर्णन यहूदी चेहरे और वंश के तौर पर किया. पंडित राम चंद काक जो एक समय कश्मीर के प्रधानमंत्री थे, उन्होंने 1933 में प्रकाशित अपने Ancient Monuments of Kashmir में लिखा है:

मूसा यहां एक बहुत ही सामान्य नाम है और कुछ प्राचीन स्मारकों से जुड़े खुलासे अभी भी होने हैं. असुल-ए-काफ़ी एक हज़ार साल पहले लिखी गई शिया परंपराओं की एक किताब है. इस पुस्तक में उल्लेख है कि प्राचीन काल में कश्मीर में एक राजा था जिसके चालीस दरबारियों को तोराह का ज्ञान था.

फ्रांसिस बर्नियर के दस्तावेज भी अहम हैं

पश्चिमी ट्रैवलर्स, लेखक और इतिहासकारों की बात करें तो शुरुआत फ्रांसिस बर्नियर से होगी. वह औरंगजेब का दरबारी था और कई साल तक कश्मीर की यात्रा भी की है. उन्होंने लिखा है कि कश्मीर में यहूदी धर्म के कई निशान पाए जा सकते हैं. पीर-पांचाल पर्वतों को पार करने के बाद, सीमावर्ती गाँवों के निवासियों का चेहरा हूबहू यहूदियों जैसा दिखाई दिया.

एस मनूची, क्लौडियस बुचनन, Travel in Himalyan Provinces के लेखक HH विल्सन लेखकों ने भी ऐसी ही बातें कही हैं. 1842 में छपी Travels in Kashmir,
L a d a k h a n d I s k a r d o o में लेखक जीटी विग्ने ने लिखा है कि श्रीनगर के पास कुछ यहूदी मकबरे होने की बात लिखी थी.

कश्मीरियों की कई प्रथाएं इजरलाइट जैसी हैं

यही नहीं, कस्टम और ट्रेडिशन पर हुई एक स्टडी में भी कश्मीर के लोगों की इजरलाइट या बिब्लिकल ट्रेडिशन से करीबी देखी गई है. नाजिर अहमद ने ये स्टडी की और पाया कि जन्म, विवाह, मातम, शव दफनाने, भोजन और आम आदतों की कई प्रथाएं पुराने यहूदी दौर से मेल खाती हैं. ईद फस्साह यहूदियों के पासओवर से मेल खाता है. यहूदी एक दौर में अपनी पोट्री के लिए मशहूर रहे हैं और श्रीनगर म्यूजियम में ऐसी पोट्री की बहुतायत है जो कश्मीर घाटी में अलग अलग जगहों से पाई गई हैं.

कश्मीर के मंदिरों पर भी यहूदी असर होने की बात पूर्व में कही गई है. मट्टन के पास मार्तंड मंदिर है, जिसके बारे में ऑर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के इंचार्ज रहे डॉ. जेम्स फर्ग्युसन ने कहा है कि यह मंदिर एक यहूदी मंदिर था. कश्मीर का दूसरा महत्वपूर्ण मंदिर तख्त (सोलोमान का ताज) ए सुलेमान है. यह मंदिर यरूशलेम के निकट दाऊद के तीसरे पुत्र अब्सिल्लम के मकबरे की प्रतिकृति है.

कश्मीर की भाषा की बात करें तो ये भी कुछ यही सबूत देती है. रिसर्चर सर जॉर्ज ग्रेगसन ने पाया है कि कश्मीरी भाषा गैर भारतीय है और संस्कृति परिवार से नहीं है. प्रोफेसर ई.जे. रैपसन का कहना है कि वास्तव में सेमिटिक मूल की दो भाषाएँ थीं, जिन्हें 'ब्राह्मी' और 'खोरोष्ठी' के नाम से जाना जाता है. 

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यह कहने के बाद कि दो भाषाओं को 'व्यापारियों द्वारा मेसोपोटामिया के माध्यम से भारत में लाया गया था, उन्होंने कहा कि 'खोरोष्ठी' विशेष रूप से उत्तर पश्चिमी भारत की वर्णमाला है, यह अरामी लिपि की एक किस्म है जो आम तौर पर पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व में पूरे पश्चिमी एशिया में प्रचलित थी.  जैसे-जैसे फ़ारसी भाषा विकसित हुई, सीरियाई प्रभाव ने सुलुस लिपि को जन्म दिया. अरबी मिश्रण के साथ नई फारसी के परिणामस्वरूप कश्मीर के लोगों की भाषा 'कशर' बन गई.

Source : https://www.reviewofreligions.org/ 

चलते चलते 26 अक्टूबर को हुई दूसरी घटनाओं पर भी एक नजर डाल लेते हैं

1890 - पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी का जन्‍म हुआ

1974 - बॉलीवुड ऐक्ट्रेस रवीना टंडन का जन्म हुआ

1994 - 46 साल से जारी युद्ध को खत्म करते हुए इजरायल-जॉर्डन ने शांति संधि की

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