Kartar Singh Sarabha Martyrdom: क्यों नाकाम हुआ गदर आंदोलन? आज फांसी पर झूले थे 7 क्रांतिकारी | Jharokha

Updated : Nov 30, 2022 07:52
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Mukesh Kumar Tiwari

Ghadar Conspiracy 1915 : अप्रैल 1919 में जलियांवाला बाग (Jallianwala Bagh massacre) जनरल डायर के ऑर्डर पर खून से लाल हो चुका था... घटना में सैंकड़ों की मौत हुई थी...जलियांवाला बाग खून से लाल हो गया था. भगत सिंह (Bhagat Singh) तब 12 साल के भी नहीं हुए थे. पजामा कमीज पहने भगत जलियावाला बाग पहुंचे थे. उनकी जेब में एक छोटा सा बोतलनुमा गिलास था. नुकीले पत्थर से खोदकर खून से सनी मिट्टी उठाई और उसे बोतल में भर दिया. घर पर बिना किसी को बताए अमृतसर चले गए. वहां बहन का घर था. बहन को खूनी मिट्टी से भरा गिलास दिखाया और जलियांवाला बाग का किस्सा बता डाला. कुछ फूल भी लेकर आए और गिलास के चारों ओर सजा दिए. 

इसके ठीक 10 साल बाद अप्रैल 1929 में दिल्ली असेंबली में बम (Delhi Assembly Bomb Case) फेंकने के बाद भगत सिंह को गिरफ्तार किया जाता है. तब भगत सिंह की जेब से जो चीजें बरामद होती हैं, उसमें एक तस्वीर भी थी... यह तस्वीर करतार सिंह सराभा (Kartar Singh Sarabha) की थी. भगत मां को सराभा की फोटो दिखाकर कहते थे कि यह मेरे गुरू हैं. झरोखा में आज जिक्र होगा करतार सिंह सराभा का जिन्हें आज ही के दिन 6 और क्रांतिकारियों के साथ फांसी दी गई थी...

कनाडा-अमेरिका के भारतीयों ने बनाई थी गदर पार्टी

पहले विश्व युद्ध के समय गदर आंदोलन को क्रांतिकारियों ने मजबूती से अंजाम देने की तैयारी की थी. 21 फरवरी 1915 को छावनियों में विद्रोह की तैयारी कर ली गई थी. फहराने के लिए ध्वज भी तैयार कर लिया गया था...  

जब देश अंग्रेजों का गुलाम था तब कनाडा और अमरीका में रह रहे भारतीयों ने 100 बरस पहले ‘गदर पार्टी’ बनाई थी. मकसद था भारत की सरजमीं से बाहर रह रहे भारतीयों की मदद से देश को आजाद कराना. गदर पार्टी ने ‘गदर’ नाम का एक समाचारपत्र भी निकाला और कई जहाजों में प्रवासी भारतीयों को भारत रवाना किया...

साल 1915 में गदर पार्टी के क्रांतिकारियों ने उत्तर भारत की सभी सैनिक छावनियों में आजादी का शंखनाद करने की योजना तैयार की थी. हालांकि यह योजना सफल नहीं हो सकी, लेकिन गदर पार्टी की ये कोशिश भारत की आजादी के आंदोलन का एक स्वर्णिम धरातल है. भारत के इतिहास में गदर आंदोलन के जांबाजों को उचित स्थान नहीं मिला है. 

गदर आंदोलन की तारीख 21 फरवरी 1915 थी

भारत के इतिहास में 21 फरवरी 1915 का वही महत्व है जो 31 मई 1857 का है. आजादी के पहले आंदोलन में 31 मई क्रांति की उद्घोष की तारीख थी और साल 1915 में 21 फरवरी क्रांति की तारीख तय की गई. लेकिन दुर्भाग्य ने भारत का पीछा नहीं छोड़ा. धूर्त अंग्रेजों ने किसी तरह अपने एक जासूस कृपाल सिंह को गदर पार्टी में घुसा दिया. उसने पूरी योजना का राज खोल दिया. क्रांतिकारियों को भी कृपाल सिंह पर शक हो गया था इसीलिए क्रांति की तारीख 19 फरवरी कर दी गई. कृपाल सिंह को नजरबन्द कर दिया गया लेकिन उसने चालाकी से 19 फरवरी का रहस्य भी अंग्रेजों के सामने खोल दिया.

ये पूरा मिशन अब सीक्रेट नहीं रह गया था. जानकारी लीक होने से बेखबर करतार सिंह, 70-80 हथियारबंद साथियों के साथ फिरोजपुर मिलिट्री कैंट की ओर बढ़े. यहां उन्हें सैनिकों के साथ जुड़ना था. हालांकि विश्वासघात की वजह से 18 फरवरी की रात ही भारतीय सैनिकों के हथियार ले लिए गए थे. पूरी तैयारी धराशायी हो चुकी थी. कई गिरफ्तार हुए, देशद्रोह का केस चला और कईयों का फांसी हुई. 

28 मार्च 1915 को गिरफ्तार हुए थे करतार सिंह सराभा

करतार सिंह, हरनाम सिंह, तुंदीलत और जगत सिंह फरार हो गए और मिछनी पहुंचे. ये अफगानिस्तान के पास की एक जगह थी. रासबिहारी बोस ने उन्हें सलाह दी थी कि वे काबुल चले जाएं. सलाह मानकर करतार सिंह काबुल की ओर चल भी दिए लेकिन वजीराबाद पहुंचने पर उन्हें कुछ और ख्याल आया. करतार सिंह के अंदर विचार आया कि अगर वह भाग गए तो भगोड़े कहे जाएंगे. उन्होंने अपने कदम वापस मोड़ लिए. 28 मार्च 1915 को सरगोधा के पास उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. रिसलदार गंधा सिंह ने उनकी मुखबिरी कर दी थी.

उन्हें सेंट्रल जेल लाहौर ले जाया गया और उनपर देशद्रोह का मुकदमा चलाया गया. मस्तमौला करतार सिंह को इस बात की बिल्कुल परवाह न थी कि अदालत में जुर्म स्वीकार कर लेने का मतलब है, मुकदमे का बिगड़ जाना. पर करतार सिंह ने बहादुरी से भरा बयान दिया. उन्होंने गदर आंदोलन में अपनी भागीदारी की बात स्वीकार कर ली थी और ये भी कहा कि ऐसा ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकने के लिए था. इसे सुनकर जज भी परेशान हो गए थे. करतार सिंह ने सब बातें कबूल करके कहा- मेरे लिए मुकदमे का कोई मतलब नहीं है. न मुझे ब्रिटिश सरकार के फैसले पर भरोसा है. मैं जानता हूं कि जुर्म के इकबाल के दो ही नतीजे हैं- कालापानी या फांसी...

जज को इस बयान के अंजाम का पता था. जज ने उनसे कहा कि वह अपने बयान पर विचार करने के लिए एक दिन का वक्त लें. लेकिन करतार सिंह सराभा टस से मस नहीं हुए. लाहौर षड़यंत्र केस में कुल 61 लोगों पर मुकदमा चला. जज ने अपने फैसले में लिखा- करतार सिंह ने अमेरिका, हिंदुस्तान के मार्गों में कोई जगह, कोई अवसर नहीं छोड़ा, जहां षड़यंत्र योजना न फैलाई हो. इसलिए इन 61 लोगों में करतार सिंह सबसे महत्वपूर्ण है, जिसे अपने किए पर गर्व है. 

करतार सिंह सराभा का वजन 10 पौंड बढ़ गया था

फांसी की सजा की घोषणा से फांसी होने तक की अवधि में करतार सिंह का वजन 10 पौंड बढ़ गया था. 

करतार सिंह अपने बयान पर अडिग रहे. उन्होंने कहा- मातृभूमि की रक्षा के लिए दिया गया कोई भी बलिदान बड़ा नहीं है. करतार सिंह सराभा को फांसी की सजा दी गई. फांसी से 2 दिन पहले, उनके दादा उनसे मिलने आए. करतार सिंह को दादा ने ही पाल पोसकर बड़ा किया था. दादा से सराभा ने कहा कि हमारे कई रिश्तेदार हैजा और प्लेग से मर चुके हैं, आप बताएं कौन सी मौत ज्यादा अच्छी है. महीनों बिस्तर पर रहकर कष्टकारी मौत या किसी और तरह से, जैसे इस तरह?

16 नवंबर को फांसी की घड़ी भी आ गई. झांसी के परमानंद उनके बगल वाली कोठरी में बंद थे. परमानंद ने बताया था कि करतार सिंह सराभा फांसी से पहले देशभक्ति से भरी कविताएं लिख रहे थे. फांसी के तख्त पर खड़े होकर उन्होंने फंदे को चूमा और जोर से वंदे मातरम् का नारा लगाया. 

16 नवंबर, 1915 को लाहौर जेल में कुल 7 क्रांतिकारियों को फांसी दी गई थी. इसमें लुधियाना के सराभा के रहने वाले करतार सिंह सराभा के अलावा, महाराष्ट्र के पुणे में तालेगांव के विष्णु गणेश पिंगले, अमृतसर के सुरसिंह के जगत सिंह, सियालकोट के भट्टी गोराया के हरनाम सिंह, अमृतसर के गिलवाली के सुरैन सिंह, अमृतसर के गिलवाली के बख्शीश सिंह, अमृतसर के गिलवाली के ही इशर सिंह थे.

मां भारती की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने वाले इन सभी क्रांतिकारियों को हमारा कोटि कोटि नमन...

चलते चलते 16 नवंबर की अहम घटनाओं पर एक नजर डाल लेते हैं

1927 - भारतीय सिनेमा और रंगमंच के दिग्गज कलाकार श्रीराम लागू (Shriram Lagoo) का जन्म

1973 - भारत के मशहूर शटलर पुलेला गोपीचंद (Pullela Gopichand) का जन्म

1897 - पाकिस्तान के शुरुआती समर्थक चौधरी रहमत अली (Chaudhary Rahmat Ali) का जन्म

1955 - भारतीय मूल के वासुदेव पाण्डे त्रिनिदाद एवं टौबेगो (Trinidad and Tobago) के PM बने

1846 - हिन्दुस्तानी ज़बान और तहज़ीब के बड़े शायर अकबर इलाहाबादी (Akbar Allahabadi) का जन्म

ये भी देखें- Former PM Chandrashekhar's Journey: अयोध्या मामला क्यों नहीं सुलझा पाए पूर्व PM चंद्रशेखर?

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