Dhirubhai Ambani Success Story: रिलायंस इंडस्ट्रीज - Reliance Industries (RIL) की कहानी एक इतिहास है. कंपनी की स्थापना 1950 के आखिरी दौर में दिवंगत धीरूभाई अंबानी ने की थी. तब वह एक पेट्रोल पंप अटेंडेंट थे. ध्यान देने वाली बात ये है कि जिस रिलायस इंडस्ट्रीज के मालिक मुकेश अंबानी का घर एंटीलिया (Mukesh Ambani House Antilia) आज मुंबई की आईकॉनिक इमारत बन चुका है, उस कंपनी के संस्थापक 1960 के दशक में अपनी पत्नी और बच्चों के साथ मुंबई में एक कमरे की चॉल में रहते थे.
ग्रुप की कंपनियां आज सिंथेटिक फाइबर, टेक्सटाइल, पेट्रोकैमिकल, ऑयल और गैस एक्सप्लोरेशन, पेट्रोलियम रिफाइनिंग, टेलिकम्युनिकेशन, मीडिया, रिटेल और फाइनेंशियल सर्विसेज में कारोबार कर रही हैं. धीरूभाई अंबानी का जन्म 28 दिसंबर 1932 को हुआ था... आज हम जानेंगे कि कैसे उन्होंने 500 रुपये से कारोबार शुरू करके हजारों करोड़ तक का सफर तय किया...
धीरूभाई के पास कमाई को पहले से भांपने की काबिलियत थी. यमन के एडन में काम करते हुए धीरूभाई ने देखा कि वहां चल रहे सिक्कों की कीमत उस चांदी की कीमत से कम थी जिसपर कीमत अंकित थी... धीरूभाई ने सिक्के खरीदे, उन्हें पिघलाया और मुनाफे को जेब में डाल लिया. उनके अनऑफिशियल बायोग्राफर (Dhirubhai Ambani Unofficial Biography) हमीश मैकडोनल्ड (Hamish McDonald) की मानें तो धीरूभाई ने कहा था- मौके का फायदा नहीं उठाने में मेरा कोई यकीन नहीं.
1998 में छपी उनकी अनऑफिशियल बायोग्रफी अभी तक बुकस्टॉल पर नहीं आ सकी है. तब अंबानी परिवार ने धमकी दी थी कि अगर किताब में कुछ भी मानहानि योग्य पाया गया तो कानूनी कार्रवाई की जाएगी.
भारत में जहां लाखों स्टार्टअप्स हर साल फेल होते हैं... धीरूभाई अंबानी ने जिस तरह 500 रुपये से सफर शुरू करके रिलायंस को 75 हजार करोड़ रुपये (750 अरब रुपये) की कंपनी बनाई, ये हर कारोबारी को सीखने की जरूरत है.
28 दिसंबर 1932 को पैदा हुए धीरूभाई गुजरात के एक स्कूल शिक्षक के तीसरे बेटे थे. तब कोई कल्पना नहीं कर सकता था कि जूनागढ़ के बहादुर कांजी हाई स्कूल (The Bahadurkhanji High School, Junagadh) का छात्र - जिसने दसवीं कक्षा के बाद एडन में अपने बड़े भाई रमणिकलाल के पास जाने के लिए पढ़ाई छोड़ दी थी, वह एक दिन दुनिया के सबसे दौलतमंद लोगों में से एक होगा.
1957 में एडन (यमन) में 8 साल बिताने के बाद धीरूभाई मुंबई पहुंचे, तब उनकी जेब में सिर्फ 500 रुपये थे. 500 रुपये तब ऐसी राशि थी कि 4 लोगों का परिवार कोई 3-4 महीने इससे अपना गुजारा कर सकता था लेकिन इसी 500 रुपये के साथ धीरूभाई ने कारोबारी दुनिया में पहला कदम रखा.
1958 तक जब उन्होंने अपना पहला छोटा ट्रेडिंग वेंचर शुरू किया, तब उनका परिवार भुलेश्वर के जयहिंद एस्टेट में रहता था. कई प्रोडक्ट, खासतौर से मसालों और कपड़ों में कारोबार करने के बाद, 8 साल बाद धीरूभाई अहमदाबाद के पास नरोदा में एक छोटी कताई मिल के मालिक बन गए थे. ये उनके लिए एक बड़ी कामयाबी थी.
1976-77 तक रिलायंस का सालाना कारोबार 70 करोड़ रुपये (700 मिलियन) था. बहुतों के लिए यह काफी होता लेकिन धीरूभाई के लिए ये तो महज एक शुरुआत थी.
1977 में रिलायंस इंडस्ट्रीज सार्वजनिक हुई और 58,000 निवेशकों से इक्विटी पूंजी जुटाई. इसमें से कई निवेशक छोटे शहरों से थे. उसी वक्त से धीरूभाई ने अपनी कंपनी के टेक्सटाइल ब्रांड Vimal का बड़े पैमाने पर प्रचार करना शुरू कर दिया. रिलायंस ग्रुप के चेयरमैन ने 100 से अधिक फ्रेंचाइजी के रिटेल आउटलेट्स का उद्घाटन एक ही दिन में किया था.
आलोचक मानते थे कि धीरूभाई को दिग्गज नेताओं की सरपरस्ती हासिल थी... और इसी का फायदा उन्हें मिलता गया... 1980 में इंदिरा गांधी सत्ता में लौटीं... तब विक्ट्री रैली के मंच पर वह और धीरूभाई साथ दिखाई दिए थे... बताया जाता है कि वह तब के वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री के प्रमुख सहयोगी आर.के. धवन के भी खासे करीबी थे.
अगर आप कारोबार में सफल होना चाहते हैं और खासकर भारत में, तो आपकी नेटवर्किंग स्किल्स बेहतरीन होनी चाहिए... आपके पास ऐसे संपर्क होने चाहिए जो आपके प्रोजेक्ट्स को आगे बढ़ा सकें... और धीरूभाई के पास ऐसे ही संपर्क थे.
उनके शुभचिंतक कहते हैं कि अंबानी की कामयाबी उनके वित्तीय कौशल, मार्केटिंग और टेक्नोलॉजी में इनोवेशन और प्रोजेक्ट एग्जिक्युशन स्किल्स की वजह से ढलान पर आई... लेकिन उनके आलोचक कहेंगे कि जिस तरह से वे दोस्त बना सकते थे और लोगों को प्रभावित कर सकते थे वह बेहद कम दिखाई देता है. वे कहते हैं, इसने उन्हें अपने फायदे के लिए लाइसेंस-परमिट सिस्टम के इस्तेमाल करने का मौका दिया. धीरूभाई ने एक बार कहा था: "हम अपने शासकों को नहीं बदल सकते, लेकिन जिस तरह से वे हम पर शासन करते हैं, हम उसे बदल सकते हैं."
बेशक, सफलता कभी भी एकतरफा नहीं होती. धीरूभाई अंबानी के अपने प्रतिद्वंद्वी थे और उन्होंने उन्हें हर तरह से नीचे गिराने की कोशिश की.
रामनाथ गोयनका के साथ उनकी कांटे की लड़ाई थी जो इंडियन एक्सप्रेस के उग्र और निडर मालिक थे; फिर बॉम्बे डाइंग के नुस्ली वाडिया के साथ भी उनकी प्रतिद्वंदिता थी; वाडिया की हत्या की साजिश को लेकर अंबानी के कुछ कर्मचारियों के खिलाफ आरोप भी लगाए गए; वीपी सिंह सरकार के दौरान रिलायंस का उत्पीड़न हुआ, जिसने लगभग कारोबारी घराने को घुटनों पर ला दिया था...
1986 में दिल का दौरा पड़ने के बावजूद धीरूभाई बच गए थे और उनकी कंपनी का विकास जारी रहा. 1990 के दशक में उन्होंने आक्रामक रूप से पेट्रोकेमिकल्स, ऑयल रिफाइनिंग, टेलीकम्युनिकेशन और फाइनेंशियल सर्विसेस की ओर रुख किया. जब उन्होंने 2002 में अंतिम सांस ली - तब फोर्ब्स की लिस्ट में वे दुनिया के 138 वें सबसे अमीर व्यक्ति थे जिसकी कुल अनुमानित संपत्ति 2.9 बिलियन डॉलर थी.
फोर्ब्स की सालाना सूची कहती है कि दुनिया की 2,000 सबसे बड़ी और ताकतवर कंपनियों में से 56 भारत में है. इसमें मुकेश अंबानी की अगुवाई वाली रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड की रैंकिंग 142 है. 3,42,982 (2022) कर्मचारियों वाली कंपनी की कमाई 7.928 ट्रिलियन भारतीय करेंसी है. कंपनी की कमाई भारत की जीडीपी की लगभग 3 फीसदी है. यह कंपनी अपने एक्सपोर्ट से ही कुल कमाई का 37 फीसदी हासिल करती है.
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