Hello and Welcome, मैं हूँ Swati Jain और आप देख रहे हैं editorji. आज मैं आपके लिए लेकर आई हूं उस फिल्म से जुड़ा दिलचस्प किस्सा जिसे हिंदुस्तानी सिनेमा का सिरमौर कहा जाता है, जिसे सदी की फिल्म कहना गलत नहीं होगा.
ये किस्सा जुड़ा है मशहूर बॉलीवुड फिल्म डायरेक्टर करीमुद्दीन आसिफ यानी के आसिफ से. के आसिफ ने अपनी ज़िन्दगी में सिर्फ 3 ही फिल्में निर्देशित कीं, जिनमें से एक तो पूरी भी नहीं हो पाई, लेकिन बावजूद इसके उनका नाम सिनेमा के इतिहास में अमर हो चुका है. वो अपने काम करने के अलग और जुनूनी अंदाज के लिए मशहूर थे. के आसिफ की पहली फ़िल्म थी फूल, शायद आपने नाम भी नहीं सुना होगा, लेकिन फूल के 15 साल बाद आई थी उनकी वो फ़िल्म जो इतिहास बन गयी और जिसने इतिहास रच दिया, इस फ़िल्म का नाम है मुग़ले आज़म.
‘मुग़ल-ए-आज़म’ को बनाने में क़रीब 15 साल लगे, 1944 में के आसिफ ने फ़िल्म की कहानी पर काम करना शुरू कर दिया था और फ़िल्म रिलीस हुई थी 1960 में. ये फिल्म उस वक़्त बननी शुरू हुई जब हमारे यहां अंग्रेजों का राज था. फाइनेन्सर की मौत, प्रोड्यूसर का बदलना, कास्ट का बदलना ... बहुत सारी अड़चनों के साथ साथ ये भी देरी की वजह हो सकती है कि फ़िल्म अंग्रेज़ी हुकूमत के अंतिम सालों में बननी शुरू हुई थी.
ये उस दौर की सबसे महंगी फिल्म थी, जिसकी लागत तब तक़रीबन 1.5 करोड़ रुपये आई थी, उस दौर में महंगी से महंगी फिल्में भी 5 से 10 लाख तक में बन जाय करती थीं. लेकिन लंबे इंतेज़ार के बाद जब फ़िल्म रिलीस हुई तो इसने बॉक्स आफिस कलेक्शन के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए, और आपको जानकर हैरानी होगी कि इस फ़िल्म की कमाई का रिकॉर्ड तोड़ने में भारतीय सिनेमा को 15 साल लग गए.
अब एक दिलचस्प बात... उस समय दिलीप साहब (Dilip Kumar) और मधुबाला (Madhubala) के अफेयर की खबरें पूरे जोर पर थीं. लेकिन मधुबाला के पिताजी अताउल्लाह खान (Ataullah Khan) को ये रिश्ता मंजूर नहीं था जिस वजह से आसिफ जी को रोमांटिक सीन शूट करने में दिक्कत हो रही थी. लेकिन के आसिफ के दिमाग की भी दाद देनी होगी. के आसिफ ने दिलीप-मधुबाला के रोमांटिक सीन शूट के दौरान एक तरकीब निकाली. मधुबाला के पिताजी जुआ खेलने के शौकिन थे. ऐसे में आसिफ ने अपने स्टाफ को अताउल्लाह खान के साथ जुआ खेलने में लगा दिया और तब तक हारने के लिए कहा जब तक वो सीन पूरी तरह से शूट न हो जाए.
ये तो बात हुई दिलीप और मधुबाला के रोमांटिक सीन की. अब इस फिल्म से जुड़ा एक और वाक्या सुनिए. फिल्म में शीश महल का सेट बनने में पूरे दो साल लग गए थे. आसिफ़ को इसकी प्रेरणा जयपुर के आमेर फोर्ट में बने शीश महल से मिली थी. शीश महल के किये शीशे बहुत ज़्यादा कीमत चुका कर बेल्जियम से मंगवाये गए थे. लेकिन उनके आने से पहले ईद आ गई. रसम का पालन करते हुए मुग़ल-ए-आज़म के फ़ाइनांसर शाहपूरजी मिस्त्री आसिफ़ के घर पर ईदी लेकर पहुंचे. वो एक चाँदी की ट्रे पर कुछ सोने के सिक्के और एक लाख रुपये ले कर गए थे. आसिफ़ ने पैसे उठाए और मिस्त्री को वापस करते हुए कहा, 'इन पैसों का इस्तेमाल, मेरे लिए बेल्जियम से शीशे मंगवाने के लिए करिए.
तो ये थे मुग़ल-ए-आज़म से जुड़े कुछ किस्से, और भी ऐसी दिलचस्प फिल्मी बातें किससे जानने के लिए देखते रहिए Editorji का ये स्पेशल सेगमेंट