चुनाव से पहले टीएमसी नेताओं ने जब जब कांग्रेस से कहा कि उन्हें बंगाल में मोदी का सामना करने के लिए ममता को समर्थन देना चाहिए, बंगाल कांग्रेस की ओर से यही जवाब आया कि
ममता को कांग्रेस के बैनर तले आ जाना चाहिए. इसे कांग्रेस का अति आत्मविश्वास कहें या फिर सच्चाई से मुंह चुराना, लेकिन जानकारों का कहना है की दीदी और बीजेपी के जीत में अगर
ममता ने बाजी मारी तो उसके लिए कहीं ना कहीं कांग्रेस और लेफ्ट भी जिम्मेदार हैं. दरअसल ये सच्चाई है कि बंगाल में अगर कोई सीधी लड़ाई में दिख रहा था तो वो बीजेपी और टीएमसी ही थे सड़कों से लेकर मीडिया तक में बंगाल के युद्ध में यही दो योद्धा फ्रंट फुट पर थे. कांग्रेस और लेफ्ट दोनों मिलकर चुनाव तो लड़ रहे थे लेकिन वो चुनाव प्रचार में कहीं दिखे ही नहीं. खासतौर से कांग्रेस के बड़े सूरमा कहीं नहीं थे. ऐसा लगा कि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी असम से ज्यादा उम्मीद लगाए बैठे थे और कांग्रेस का ध्यान बंगाल में था ही नहीं. कहा जाता है कि बंगाल कांग्रेस और वामपंथ के अनुरोध के बावजूद राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने केरल चुनाव को ज्यादा तवज्जो दी. और कांग्रेस और वामपंथियों ने अपना वजूद खत्म करते हुए अपने वोटर टीएमसी को अप्रत्यक्ष रूप से सौंप दिए. यही वजह है कि गठबंधन का इतना खराब प्रदर्शन देखने को मिल रहा है कि राज्य में दोनों के वजूद पर ही सवाल खड़े हो रहे हैं.
दरअसल बंगाल में लगभग 30 फीसदी मुस्लिम वोटर्स हैं और इनका अच्छी खासी संख्या टीएमसी के पाले में खड़ी हो गई . विश्लेषक कह रहे हैं कि कांग्रेस और वामपंथियों ने गठबंधन तो बनाया लेकिन अपनी कमजोरियों की वजह से ये ममता बनर्जी के लिए काम करता रहा. - बात अगर वामदलों की करें तो उनके लिए आने वाले दिन और मुश्किल भरे हो सकते हैं, इस चुनाव में वाम मोर्चा तीसरी बार पस्त हो रहा है, 2011 की हार के बाद से मोर्चा फिर से खड़ा नहीं पा रहा है. 34 साल तक देश की राजनीति में वामपंथ के गढ़ रहे बंगाल से लेफ्ट लगातार सिमट रहा है. उसकी कमजोर हालत की अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस चुनाव में उसे अपनी प्रतिदंद्दी से कांग्रेस से हाथ मिलाने का समझौका करना पड़ा और साल 1997 के बाद वो सबसे कम सीटों पर चुनाव लड़ी..लेफ्ट ने इस चुनाव में 165 सीटों पर चुनाव लड़ा था और चुनाव परिणाम ने जता दिया है कि हालत राज्य की राजनीति में क्या हो गई है. सीपीएम, सीपीआई, फॉरवर्ड ब्लॉक और आरएसपी...ये सारे दल राज्य में अपनी रणनीति में बदलाव नहीं करने के कारण सिमट रहे हैं. बीजेपी अब राज्य में मुख्य विपक्षी दल की हैसियत में आ गई है. और कांग्रेस और वाममोर्चा यहां विरभी कहलाने लायक सीट भी नही जुटा पाए हैं