Republic Tv के एडिटर अर्नब गोस्वामी की गिरफ्तारी के खिलाफ जहां भाजपा और सरकार के मंत्री खुलकर सामने आए वहीं सुप्रीम कोर्ट ने भी फौरन सुनवाई करते हुए कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी की रक्षा करना अदालत का काम है. और अर्नब को 8 दिन में जमानत मिल गई. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत देते हुए महाराष्ट्र सरकार को फटकार भी लगाई. अभिव्यक्ति की आजादी का सवाल उठाना बिल्कुल सही है ... आइए आपको बताते हैं कुछ और पत्रकारों और नागरिकों का केस जो सरकार और अदालत से ऐसे ही फैसले और ऐसी ही तेजी की उम्मीद कब से कर रहे हैं ...
आखिर इनका क्या कसूर?
सिद्दीक कप्पन- पेशे से पत्रकार, उम्र 41 साल. हाथरस जाते हुए यूपी पुलिस ने पकड़ा और UAPA के तहत केस दर्ज कर दिया. करीबन 40 दिनों से पुलिस हिरासत में हैं. सुप्रीम कोर्ट ने उनके केस में सुनवाई नहीं की और कहा कि लोअर कोर्ट जाएं.
आसिफ सुल्तान- कश्मीर के पत्रकार - पिछले 808 दिनों से जेल में हैं. इनपर आतंकियों को सहयोग करने का आरोप है, हालांकि ये बात अबतक कहीं साबित नहीं हुई है. बस जेल में हैं और सुनवाई नहीं हो रही.
सुधा भारद्वाज- महिला वकील, उम्र 56 साल - UAPA के तहत गिरफ्तार, लगभग ढाई साल से कैद में हैं. 24 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने इन्हें अंतरिम जमानत देने से इनकार कर दिया था और कहा था कि आप रेगुलर बेल के लिए अप्लाई क्यों नहीं करतीं.
वरवरा राव - उम्र 81 साल, तबीयत गंभीर रूप से खराब - एल्गार परिषद मामले में आरोपी, UAPA के तहत केस दर्ज करने के बाद से 2 साल से जेल में हैं, जमानत का इंतजार कर रहे हैं.
फादर स्टेन स्वामी- उम्र 83 साल, UAPA के तहत केस दर्ज - पार्किंसन्स बीमारी से ग्रसित - हाथ कांपते हैं और ग्लास तक नहीं पकड़ सकते, इसलिए अदालत से गुजारिश की थी कि सिपर और स्ट्रॉ मुहैया कराया जाए, लेकिन इसपर NIA कोर्ट ने सुनवाई तीन हफ्ते टाल दी गई.